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________________ :: शेष विद्या प्रकाश ६६ :: शक्तियों का अभ्यास खूब कराया जाता था । ऊपर के श्लोकों का भाव यही है कि 'मंत्र ( गोपनीय बातें ) शक्ति को आउट कर देने से राष्ट्र को नुकसान पहुंचता है । १०१ ।। 'सोलह शृङ्गार' आदौमज्जनं चारुचीर तिलकं नेत्राञ्जनं कुण्डले नासा मुक्तिकः पुष्पहारधवलं झंकार कौ नूपुरौ । अंगे चन्दन लेपनं कुसुमणी क्षुद्रावली घंटिका तांबूल करकंकणं सुचरिता शृंगार का षोडशाः ।। १०२ ।। अर्थ- सौभाग्यवती स्त्री के ये १६ शृङ्गार हैं । स्नान, चन्दन का लेप, सुन्दर कपड़े, शोभनीय तिलक, प्रांखों में काजल, कानों में कुण्डल, नाक में मोती, फूलहार गले में, पैरों में भांभर, चोली, कंदोरा, मुंह में पान, हाथ में कंगन || १०२ || 'लक्ष्मी का नाश' नापितस्य गृहे क्षौरं पादेन पादधर्षणम् । आत्मरूपं जले पश्यन् शक्रस्यापि श्रियं हरेत् ॥ १०३॥ अर्थ - नीतिकारों ने लक्ष्मी के नाश होने में तीन कारण बतलाये हैं । १. नाई के घर पर बाल दाढी बनवाना | २. पैर से पैर घिसना - साफ करना । ३. अपने मुंह को पानी में देखना । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035257
Book TitleShesh Vidya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnanandvijay
PublisherMarudhar Balika Vidyapith
Publication Year1970
Total Pages166
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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