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:: शेष विद्या प्रकाश 'भारतवर्ष की कमनसीब शताब्दी' हस्तिना ताड्यमानोऽपि न गच्छेज्जैन मंदिरम् । न वदेत् यावनी भाषां प्राणैः कण्ठ गतैरपि ।।९१।।
अर्थ-भारतवर्ष की वह कम भाग्य शताब्दी होगी जिसमें धर्मों के नाम पर या धर्म स्थानों के नाम पर मनचला तूफान हुआ होगा, उस समय किसी ने कहा 'सामने से आता हुअा हाथी भी मार दे तो मर जामो परन्तु बचाव के खातिर जैन मंदिर में मत जाना, और प्राण चले भी जायं तो परवा मत करना परन्तु यावनी (मुसलमानी-फारसी) भाषा मत सीखना । परन्तु सबों का अनुभव यह कह रहा है कि आज भी सैंकड़ों और हजारों की संख्या में ब्राह्मण लोग जैन मंदिर में वीतराग अरिहंत परमात्मा के पुजारी हैं, और जैन साधुओं के पास नौकरी भी कर रहे हैं । तथा धर्म, धुरंधर , चतुर्वेदी, त्रिवेदी और द्विवेदी भी फारसी भाषा के अच्छे पारंगत हैं, इतना ही नहीं परन्तु हिन्दी भाषा बोलने में अपमान सा अनुभव करते है और फारसी में बोलना पोजिशन समझते हैं ।।६१।।
फिकर सब को खा गई, फिकर सब का पीर ।
फिकर की जो फाकी करे, वो नर पीर फकीर ।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com