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:: शेष विद्या प्रकाश
'स्त्री सर्वोत्कृष्ट रत्न है'
अस्मिन्नसार संसारे सारं सारङ्गलोचना | यत्कुक्षीप्रभवा एते वस्तुपाल भवादृशाः ||८९ ||
अर्थ - इस असार संसार में यदि कोई सार है, तो हारेण जैसी प्रांख वाली स्त्री है। जिनकी कुक्षी से वस्तुपाल, तेजपाल, विमल मंत्री, भामाशा, जगडुशाह, मीराबाई, राजीमती, चन्दन बाला जैसे नररत्न और नारी रत्न उत्पन्न हुए हैं, तीर्थंकर की माताओं को रत्नकुक्षी कहकर इन्द्र महाराज भी हाथ जोड़ता है । इसका सीधा सादा अर्थ यही है कि 'स्त्री का अपमान, ताड़न, तर्जन और शिक्षा आदि में उसका श्रनादर करना अच्छा कर्म तो हर्गिज नहीं है, उल्टा घर की आबादी को बर्बाद करने के लक्षण हैं' ||5||
'उपसर्ग से शब्दों में चमत्कार'
आयुक्तः प्राणदो लोके, वियुक्तो मुनि वल्लभः । संयुक्तः सर्वथा नेष्टः केवलः स्त्रीषु वल्लभः ||९० ||
अर्थ-भाव अर्थ में 'धन' प्रत्यय लगाने से 'ह' धातु का भी 'हार' शब्द बन जाता है, यदि यह हार शब्द एकला ही रह जाय तो स्त्री मात्र को खूब प्यारा गले का हार कहलाता है । प्रहार शब्द
वही हार शब्द जब 'आ' उपसर्ग युक्त होता है तब
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