________________
८४ ::
:: शेष विद्या प्रकाश
'भोजराजा के प्रति बहुमान' अद्य धारा निराधारा निरालम्बा सरस्वती ।
पण्डिता खण्डिता सर्वे, भोजराजे दिवंगते ।।८७।। अर्थ-भारतवर्ष का वह सुवर्णयुग था जब कि प्रजा में सरस्वती देवी की पूजा होती थी। और राजा भी सरस्वती के परम-उपासक होते थे । छद्मवेषधारी कालीदास पंडित को भोजराज ने जब भोजराज के मृत्यु के समाचार कहे तब कालीदास दोल उठा कि 'प्राज धारा नगरी निराधार हुई । तथा सरस्वती देवी भो स्थानहीन हुई और पण्डित वर्ग भो मान रहित हुया क्योंकि पण्डितों का सत्कार करने वाला, सरस्वती का परमभक्त और प्रजा का पालक भोजराज स्वर्गवासी
हए। ।।८।।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com