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:: शेष विद्या प्रकाश
'इस संसार में धन ही सब कुछ है'
माता निन्दति नाभिनन्दति पिता भ्राता न सम्भाषते, भृत्यः कुप्यति नानुगच्छति सुतः कान्ता च नालिङ्गते । अर्थ प्रार्थनशङ्कया न कुरुते संभाषणं चै सुहृत् तस्मात् द्रव्यमुपार्जयस्य सुमते । द्रव्येण सर्वेवशाः ।।७९।।
अर्थ-हे भगवान् । लक्ष्मी देवी की प्राप्ति के लिए प्रयत्न कर । कारण कि इस काल में द्रव्य ही वशीकरण मन्त्र है । जिनके पास धन है उसी की सब पूछ-ताछ करेगे। परन्तु भाग्य के भरोसे जो प्रालसी बन कर बैठा है, या विवाह शादी में या किसी के मरने बाद के भोजन में मुफ्त का कहीं से मिल जाय इस उल्टे चक्कर में आकर जिसने धन कमाना छोड़ दिया है, उसके हाल ऐसे होते है। १. माता भी बेटे की निन्दा करती है। २. पिता भी नाराज सा रहता हैं । ३. भाई भी बोलना, चालना बंद करता है। ४. नौकर चाकर भी गुस्से में रहते है । ५. पुत्र भी उसकी बात को मानता नहीं है । ६. स्त्री भी दुश्मन सा व्यवहार करती हुई प्रेम से दूर भागती है। ७. मित्रवर्ग भी दूर दूर रहता है ।७६।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com