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:: शेष विद्या प्रकाश
नाडलाई, वरकाणा, करेड़ा. चितौड़, सादड़ी और जैसलमेर
आदि तो तीर्थ स्थानों में अमर नाम कर गये हैं। २. जिस भूमि के श्रावक देव, गुरु, धर्म के प्रति बड़े ही श्रद्धालु हैं। अर्थात् बड़ी श्रद्धा-पूर्वक अपने गुरुत्रों का बहुमान करने वाले हैं।
३. पेट के सब दर्दो ( रोग ) का नाश करने वाली 'मूग' की दाल प्रति दिन खाने को मिलती है, अच्छे नामांकित वैद्यराजों का भी यही मत है "मुद्गाद.ली गदव्याली' अर्थात् मूग की दाल रोगों के वास्ते सांपन (सर्पण) जैसी है ।
४. 'अायुर्घतम्' आयुष्य बढ़ाने में मदद देने वाला शुद्ध घी
और घी का बना हुया मिष्टान्न तो मारवाड़ में सुलभ है। ५. प्रांख, पेट और पूरे शरीर को शीतलता देने वाली छाछ
(तक) घर-घर पर मिलती है ।
६. मक्काई का भोजन और मक्काई की राब खाने पर तो दिल और दिमाग तर हो जाता है और शरीर में नवचेतना प्रा जाती है। सुनते भी है "मेवाड़ मां रो प्यारो भोजन धन्य मक्कारी राबड़ो" भाग्यशालियों ! मक्काई का भोजन करके हृष्ट-पुष्ट बने हुए 'राणा प्रताप'। और दिल तथा दिमाग जिनका तर था वे 'भामाशा" तथा महा-तपस्वी जैनाचार्य श्री जगतचन्द्र सूरि भी गोचरी में मक्काई का
भोजन करने वाले थे। जिनकी कृपा से ही तपागच्छ सर्वत्र Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com