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शेष विद्या प्रकाश ::
'थोडी बुद्धिवाला भो तब पंच' बनता है'
यत्र विद्वज्जनो नास्ति, श्लाघ्यस्तत्राल्पधीरपि । निरस्तपादपे देशे, एरण्डोऽपि द्रुमायते ||८०||
अर्थ - जिस समाज में, जिस गांव में या जिस कुटुम्ब में विद्वान् अर्थात रागद्वेष रहित, सत्य द्रष्टा, पढा लिखा ग्रादमी नहीं होता है वहां जातियों को सुधारने के बहाने, धर्म का चोला पहिन कर स्वार्थान्ध आदमी भी गांव का "पंच" बनकर बैठ जाता है । जैसे जिस भूमि पर बड़े बड़े वृक्ष नहीं होते हैं वहाँ 'एरण्डा' का पेड़ भी बडा कहलाता है ||८०||
'मरुधर की महिमा'
रम्याणि हम्र्म्याणि जिनेश्वराणां श्रद्धालवो यत्र वसन्ति श्राद्धाः ।
मुद्गा घृतं तत्र मक्का च रब्बा
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मरुस्थली सा न कथं प्रशस्या ।। ८१ ।।
अर्थ - धन्य है मारवाड ( मरुधर ) भूमि को जिस की प्रशंसा सार्वत्रिक और सदैव होती है क्यों कि
१. प्रत्येक गांव में देव विमानों का तिरस्कार करें, ऐसे जिनेश्वर देवों के बड़े-बड़े रमणीय प्रासाद ( मन्दिर ) विद्यमान हैं जैसे प्राबू, राणकपुर के मंदिर जिन्होंने देखे हैं । उन्होंने दांतों तले अंगुली दबाई है । बामणवाड़ा, सिरोही, केशरीयाजी
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