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‘शेष विद्या प्रकाश ::
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५. चाहना करने पर भी पुत्रों को प्राप्ति न हो कर कन्यायों की
प्राप्ति ज्यादा रहती है। ६. मेहनत मजदूरी करने पर भी 'तीन सांधे और तेरह टूटे' ऐमी
दुर्दशा बनी रहती है । ये छ बातें जिसके जीवन में होती है उनका मनुष्य अवतार भी नरक तुल्य है ॥७५।।
'संसार का असलो रूप गगननगर तुल्यः सङ्गमोवल्लाभानां
जलद पटलतुल्यं यौवनं वा धनं वा । स्वजन सुत शरीरादीनि विद्य च्चलानि
क्षणिक मिति समस्तं वृद्धसंसार वृत्तम् ॥७६।। अर्थ-अदम्य उत्साह के साथ ससार की जाल को चाहे कितनी ही बढ़ा दी हो। धन, दौलत, स्त्री. पुत्र परिवार के द्वारा घर चाहे कितना ही हरा भरा दिखता हो । फर्निचर, बिजली, रेडियो, और बाग बगीचे के जरिये हाट, खेली चाहे स्वर्ग से तुलना करती हो तथापि भैया एकान्त में बैठकर जरा सोच कि१. नवयुवतियों का मिलाप गन्धर्व नगर के समान एक दिन
अदृश्य होने वाला है। २. चड़ता यौवन और बढ़ता धन भी एक दिन आकाश में रहे हुए बादलों के समान आँखों से ओझल ( अदृश्य ) होगा ही।
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