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:: शेष विद्या प्रकाश 'नारकोय कर्मों का फल
कुग्रामवासः कुनरेन्द्र सेवा
कुभोजनं क्रोधमुखी च भार्या । कन्या बहुत्वं दरिद्रता च
षड़ जीवलोके नरकानि सन्ति ।।७।। अर्थ-नरक गति का वर्णन और नारकीय दुःख शास्त्रों में चाहे कैसा भी होगा परन्तु पूर्व भव में हिंसा, झूठ, चोरी, बदचलन वगैरह पाप कर्म जो इस जीवात्मा ने किये हैं उसो का फलादेश यह वर्तमान जीवन है ।
तभी तो
१. पापकर्मी-अर्थात् सुरा सुन्दरी के भोक्ता और अभक्ष्य भोजन करने वाले राजाओं के राज्य में रहना पड़ता है ।
२. धर्मकर्म अर्थात सत्यभाषण, सभ्यव्यवहार से सर्वथा दूर ऐसे
गांवों में जन्म होता है ।
३. हजार प्रयत्न करने पर भी मनपसन्द और सात्त्विक भोजन
प्राप्त नहीं होता है।
४. अनुनय विनय करने पर भी क्रोध करने वाली घर वाली
(पत्नी) से असंतोष बना रहता है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com