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:: शेष विद्या प्रकाश 'दुश्चरित्र आदमी का प्रभाव' निर्वीया पृथिवी निरोषधरसा
नीचा महत्त्वं गताः भूपाला निजधर्म कर्मरहिता
विप्राः कुमार्ग गताः । भार्या भर्तृ विरोधिन पररता
पुत्राः पितुः द्वषिणो हा ! कष्टं खलु वर्तते कलियुगे
___ धन्या नरा ये मृताः ।।७३॥ अर्थ-मनुष्यों में जब-जब पापाचरण क्रोध, मान, माया, लोभ प्रभति अविद्यामूलक आत्मा के दुगुणों की वृद्धि होती है, तब उप्त काल को कलियुग कहते हैं, उस समय अपने दिल में पड़ी हुई पापभावनाओं का प्रतिबिम्ब संसार के सब पदार्थों पर पड़ता है तब१. पृथ्वी में सत्त्वता कम हो जाती है। २. पेडों में औषधितत्त्व और रसकस भी कम हो जाता है।
३. राजाओं में भी धर्म कर्म नाश हो जाता है और वे सुरा
सुन्दरी तथा शिकार में फंस कर प्रजा के वास्ते लुटेरे बन जाते हैं।
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