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शेष विद्या प्रकाश ::
'गुरु नमस्कार'
अज्ञानतिमिरान्धानां शलाञ्जनशलाकया । नेत्रमुन्मिलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः || ३ ||
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अर्थ- हिंसा, झूठ, चोरी, मैथुन और परिग्रह इत्यादिक पाप स्थानकों को जिन संयमधारी मुनिराजों ने अपने जीवन में प्रवेश नहीं होने दिया है, ऐसे परम दयालु गुरुदेवों ने ज्ञानरूपी शलाका ( आंख में प्रांजने की सलाई ) के द्वारा अज्ञान रूपी अन्धकार से मेरे जैसे - अंध बनने वालों की ग्रांखों को खोल दी है, ऐसे परमदयालु गुरुदेवों को मैं नमस्कार करता हूँ ||३|| 'संत समागम'
चंदनं शीतलं लोके, चन्दनादपि चन्द्रमाः । चन्द्रचन्दनयोर्मध्ये, शीतलः साधु समागमः || ४ |
अर्थ - चन्दन का लेप ठंडा होता है, उससे भी चन्द्रमा की रोशनी ज्यादा ठंडी है, परन्तु काम, क्रोध और लोभ की ज्वाला रूपी संसार की आग में रात दिन रचे पचे इन्सान को साघु समागम के अतिरिक्त और कोई भी पदार्थ शीतलता ( ठंडी ) देने वाला नहीं है । लाखों रुपये का दान पुण्य करने पर भी मानव का दिल और दिमाग शान्त नही होता है, फिर भी वह यदि साधुत्रों के समागम में रहेगा तो जरूर उस भाग्यशाली को शान्ति और समाधि प्राप्त होगी | ||४||
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