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:: शेष विद्या प्रकाश
तरफ थोड़ा सा कुटुम्ब है परन्तु सत्य, सदाचार, न्याय और प्रामाणिकता के साथ मिष्ट-भाषी है तो वहां पर शान्ति है समाधि है और भाग्य देवता उसके पक्ष में है ।।४६।।
'कृपणता की निन्दा
कीटिका संचितं धान्यं, मक्षिका संचितं मधु । कृपणैः संचितं वित्तं, तदन्यैरेव भुज्यते ।।५०।।
अर्थ-निष्परिग्रह धर्म के परम और चरम उपासक तथा उपदेशक भगवान महावीर स्वामी ने मानवमात्र को समझाया था कि मानव ! धन, दौलत, सोना, चांदी ये सब साधन है, साध्य नही है अत: इस वैभव का सदुपयोग ही सीधा और सरल मार्ग है । अन्यथा कीडियों द्वारा बिल में संग्रह किया हुमा अनाज मक्खियों द्वारा बनाया हुआ मधु, जैसा दूसरों के लिये ही काम आता है । उसी प्रकार जो इन्सान मन का तथा हाथों का कंजूस है, उसका कमाया हुआ धन वकीलों में, डाक्टरों में, मकान या बंगले बनाने के, उपरान्त अपनी बहिन बेटियों को तथा पुत्रों को आखिरी फैशन ( लेटेस्ट फैशन ) वाले बनाने में ही धन का उपयोग होता हुआ नाश होगा ॥५०॥
१-अज्ञान में मौन उत्तम है। ४-जानकार के आगे अजान होना। २-पैसे वाले के सगे ज्यादा। ५-पान पर चूना नहीं लगने देना ।
३-क्रोधी के सामने नम्र होना। ६-हिम्मते मर्दा तो मददे खुदा। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com