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:: शेष विद्या प्रकाश
'मूर्ख की निन्दा' उपदेशो हि मूर्खाणां प्रकोपाय, न शान्तये । पयः पानं भुजङ्गानां केवलं विषवर्धनम् ।।६४॥
अर्थ-अर्थ और काम की सतत् उपासना से जिनका मन, हृदय और मस्तिष्क शून्य हो गया है, उनको धर्म का (मत्य और सदाचार का) पवित्र और कल्याणकारी उपदेश भी क्रोध कराने वाला होता है । जैसे:-दूध जैसा अमृतपान भी विष से भरे हुए सर्प (नाग) के लिये विष बन जाता है ।।६४।।
'खानदान स्त्री का धर्म
कार्येषु मन्त्री करणेषु दासी
____ भोज्येषु माता शयनेषु रम्मा । धर्मानुकूला क्षमयाधरित्री
पाड्गुण्यमेतद्धि पतिव्रतानाम् ।।६।।
अर्थ-खानदान कुल में जन्मी हुई और विद्यादेवी की उपासना से संस्कारी बनी हुई पतिव्रता स्त्री का नोचे लिखा हमा धर्म स्वाभाविक होता है ।
१. महत्व के कार्यों में अपने पति को योग्य सलाह देने में मन्त्री
जैसी है।
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