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शेष विद्या प्रकाश ::
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२. अपने पति के प्रत्येक कार्य में ध्यान रखने वाली होने के
कारण दासी जैसी है ।
३. पति को भोजन कराते समय माता के तुल्य है ।
४. शयन के समय रम्भा अप्सरा के समान है । ५. धर्म कार्यों में हमेशा पति के अनुकूल रहती है । ६. सहनशीलता में पृथ्वी के समान है ।। ६५ ।।
'जाति का नुकसान जाति से होता है' कुठारमालिकां दृष्ट्वा द्रुमाः सर्वे प्रकम्पिताः । वृद्धेन कथितं तत्र, अत्र जातिर्न विद्यते || ३६ ||
अर्थ - कुल्हाड़ियों से भरी हुई बैलगाड़ी को जाती हुई देखकर वन के मब पेड़ कम्पित हो गये, तब एक वृद्ध ने कहा कि हे भाईयों ! तब तक डन्ने की जरूरत नहीं है जब तक तुम्हारी - प्रर्थात् वृक्ष जाति का कोई छोटा बड़ा मेम्बर इम कुल्हाड़ी में नहीं मिलता है, अर्थात लकडी का डंडा जब कुल्हाड़ी का हत्या बनता है तभी कुल्हाड़ी में पेडों को काटने की शक्ति आती है अन्यथा नहीं आती है । ठीक इसी प्रकार अपनी मनुष्य जाति में क्लेश-ककास, वैर-भेर, मार-काट की जो होली लगती है । वह दूसरी जाति वालों से नहीं परन्तु अपनी जाति के 'खुदा बक्षों' से लगती है ।
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घर जलता है घर की चिराग से
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