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:: शेष विद्या प्रकाश
'कलियुग का प्रभाव
सीदन्ति सन्तो विलसन्त्य सन्तः
पुत्रा नियन्ते जनकश्चिरायुः । परेषु मैत्री स्वजनेषु वैरं
पश्यन्तु लोकाः ! कलिकौतुकानि ।।६७।। अर्थ-भाग्य देवता की अवकृपा से दीन हीन बना हुमा एक वृद्ध सड़क पर चलते हुए हजारों मनुष्यों को संबोधन करता हुआ कह रह. है कि इस कलियुग का नाटक देखो, १. सज्जन मनुष्यों के ऊपर दुःख के पहाड़ टूट रहे हैं । २. दुर्जनों के घरों में घी केले उड रहे हैं । ३. छोटी उम्र के बच्चे मर रहे हैं । ४. बडी उम्र का बाप अभी जिन्दा है । ५. घर के मेम्बरों से वैर-झेर बनाया जा रहा है। ६. और दूसरों के साथ मैत्रीभाव साधा जा रहा है । ।।६७।।
माता तीरथ, रिता तीरथ, तीरथ ज्येष्ठ बांधवा। कहे जिनेश्वर सब तीरथों में, मोटा तीरथ अभ्यागता ।। सासु तीरथ सुसरा तीरथ, तीरथ साला सालियां । दास मलुका यु फरमावे, बड़ा तीरथ घरवालिया ।।
घाट तीरथ छास तीरथ, तीरथ गुगरी बाकरा। ___ लड्डु भगत तो यों फरमावे, तीरथ बड़ा अंगाखग। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com