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शेष विद्या प्रकाश ::
रे रे मण्डक ! मा रोदिः यदहं खण्डितोऽनया । राम रावण मुञ्जायाः स्त्रीभिः के केन खण्डिताः ॥६३।।
अर्थ-एक स्त्री अपने दरवाजे पर खड़ी हुई रोटी तोड़ रही थी, तब उसमें से घी का एकाध बिन्दु नीचे गिर गया। तब मुन राजा-मालवा देश के महाराजाधिराज जो परस्त्री के प्यार के कारण बंदीवान बने हुए हैं. वह इस दृश्य को देखकर वकोक्ति में कह रहे हैं कि हे रोटी ! अब मत रो। मत रो। अर्थात् तू इस बात का दु:ख मन में मत ला कि इस स्त्री ने मुझे खण्डित कर दिया है, अर्थात् मेरे टुकड़े-टुकड़े कर दिये हैं । अरे भाई ! हास्यशीला, मोहिनी और मुग्धा इस स्त्री जात ने तो, तीन लोक के स्वामी रावण को, दुर्योधन को, कंस को, धवल सेठ को और मेरे जैसे स्वाभिमानी को भी खण्डित कर दिया है तो भला तेरो क्या गिनती ? स्त्री जाति का सहवास यही फल देता है ॥६३।।
चणा कहे मैं बड़ा, मेरे ऊपर नाका । मेरी खबर जब मिले, के घोड़ा आवे थाका । मकई कहे मैं बड़ी, मेरे ऊपर चोटी । मेरी खबर जब मिले, के घरे दूजे झोटी ॥ (भैंस ) चवला कहे मैं बड़ा, मेरे ऊपर फली ।
मेरी खबर जब मिले, के धोती पहरे ढीली ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com