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शेष विद्या प्रकाश ::
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देवों ने फूलों की वर्षा को और ब्रह्मचर्य धर्म की जयकार बोलते हुए सब अपने २ स्थान में चले गये ।।६०।।
'उत्तम पुरुष का लक्षण' प्रारभ्यते न खलु विघ्नभयेन नीचैः
प्रारभ्य विघ्ननिहता विरमन्ति मध्याः । विघ्नः पुनः पुनरपि प्रतिहन्यमानाः
प्रारब्धमुत्तमजना न परित्यजन्ति ॥६१॥ अर्थ-अधम, मध्यम और उत्तम ये मनुष्य जाति के तीन भेद हैं। उसमें से--
१. जो इन्सान विघ्नों को देखकर, या विघ्नों की कल्पना करके जिन्दगी में किसी भी कार्य की शुरुयात करते ही नहीं हैं, केवल प्रालस्य देव की उपासना में रात दिन मस्त हैं वे अधम प्रकार के मनुष्य हैं।
२. प्रारम्भ किये हुए कार्यों को विघ्नों से घबडा कर बीच में ही
छोड़ देते हैं, वे मध्यम पुरुष हैं ।
३. बारंबार विघ्नों के आने पर भी शुरु किया हुअा कार्य छोडते
ही नहीं हैं, वे उत्तम है, उत्तम हैं और संसार की सब सिद्धियों की वरमाला उनके गले में पड़ती है ।।६१।।
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