________________
शेष विद्या प्रकाश ::
करके संतोषपूर्वक खाना चाहिये था। वह नहीं खा सकते और स्कूल के समय में ही खान-पान का मोह खूब बढ़ जाता है। ५. शृङ्गार-शरीर, मुह, आदि को फैशनेबल बनाये रखने को
शृङ्गार कहते है, इसके प्रभाव से अपनी फैशन के द्वारा दूसरों को प्राकृष्ट करने में मन लगता है परन्तु विद्याध्ययन
से मन दूर रहता है । ६. कौतुक-खेल-तमाशा, नाटक, सिनेमा, लड़ाई झगड़ों में
बारंबार ध्यान लगाना कौतुक है । ७. प्रालस्य-पढ़ने के समय में नहीं पढ़ना और सोने के समय में ___ नहीं सोना पालस्य है। ८. निद्रा-पेट भर के खूब खाना जिससे निद्रा प्राती रहे।
विद्यार्थी-जीवन से जिसको भविष्य में सफल महापुरुष बनना है उसको चाहिए कि ऊपर के पाठ दोषों को घटाने का प्रयत्न करे ।।५।।
एक नुक्ते के फेर से हम से जुदा हुआ । वो ही नुक्ता ऊपर कर दिया तो आप ही खुदा हो गया ।।
एक उदर में उपना जामण जाया वीर । __ लुगायों रे पोने पड़िया, नहीं साग में मीर ।।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com