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: शेष विद्या प्रकाश " विद्यार्थी के पांच लक्षण" काकचेष्टा बकध्यानं, श्वाननिद्रा तथैव च । अल्पाहारः स्त्री त्यागो-विद्यार्थी पश्चलक्षणम् ॥५६॥
अर्थ-कौए के माफिक जिसकी संयमी चेष्टा हो । बक ( बगुला ) की स्वार्थ साधना में जो लीनता होती है उसके सद्दश विद्याध्ययन में भी लीनता हो। कुत्ते के समान जिसने निद्रा देवी को प्राधीन की है। ग्राहार के ऊपर जिसका संयम हो तथा मर्यादा हो। और स्त्रो कथा, स्त्री संसर्ग और विकार भावे से दूर रहने का अभिलाषक हो, वही सच्चा विद्यार्थी है। और विद्यादेवी की उपासना करता हा शंकराचार्य, तुलसीदास, सूरदास, हेमचन्द्राचार्य, महात्मागांधी, जवाहरलाल नेहरु के तुल्य बन सकता है ॥५६॥
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