________________
शेष विद्या प्रकाश ::
:: ५३
'भाग्य रेखा' उदयति यदि भानु पश्चिमायां दिशायां
प्रचलति यदि मेरुः शीततां याति वहिनः । विकसति यदि पद्म पर्वताग्रे शिखायां
नाहि चलति कदापि भाविनी कर्म रेखा ॥५४।।
अर्थ-सूर्यनारायण यदि पश्चिम दिशा में उदित होना चालू कर दे, मेरुपर्वत भी स्थिरता छोड़ दें, अग्नि देव भी अपना उष्ण धर्म छोड़ दे और पर्वत के शिखरों पर यदि कमलों का वन विकसित हो जाय तो भी गये भवों में किये हुए कर्मो का शुभ अशुभ फल मिट नहीं सकता है ।
"लाखों करो आय कर्मगति टलेना रे भाई ॥५४।।
हेत फिकरे न कर्त्तव्यं करवी तो जिगरे खुदा। पाण्डुरङ्ग कृपा से ही वर्कस्य सिद्धि हवई ।।
अपने नफे के वास्ते मत और का नुकसान कर। तेरा भी नुक्स हो जावेगा इस बात पर तू ख्याल कर ।।
श्राव नहीं आदर नहीं, नहीं नयनों में नेह । __तस घर कबहुँ न जाइये, कंचन वर्षे मेह ।।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com