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:: शेष विद्या प्रकाश
अब दूसरे प्रकार से विचारते हैं कि जिन भाग्यशालियों को अच्छे माँ-बाप और अच्छे शिक्षकों के पास सत्पथगामी संस्कारों की प्राप्ति हुई है, उन्हीं के जीवन में पराक्रम नामक गुण का विकास होता है, पराक्रमशालियों में बुद्धि का विकास और वृद्धि भी अवश्यंभावी है, बुद्धि के सद्भाव में ही मानसिक और आध्यात्मिक बल दूज के चन्द्र समान बढ़ता जाता है और ऐसे बल में ही 'धैर्य' नामक उच्चपथगामी गुण का विकास होता है, धैर्यवंत का साहस भी द्विगुणित होता है, तदनन्तर 'उद्यम' गुण भी स्वपरकल्याणकारी होता है । अब बतलाइए ऐसे पुरुषों का नुकसान देवता भी कैसे कर सकता है, क्योंकि अच्छे गुणों के द्वारा मनुष्य ही जब देव समान बन गया है ||५३ ||
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