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शेष विद्या प्रकाश ::
अन्यथा श्रीमंताई के नशे में आकर हमको यदि ठुकरा दिया, या हमारे प्रति उदासीन रहे तो प्रावते भव में प्रापको भी भिखारी बनने के लिए तैयार रहना होगा ।
कवि चला गया, सेठ मन ही मन समझ गया और भिखारियों को कुछ दिया, भिक्षा पाये हुए भिखारी भी सेठजी की 'जय' बोलते हुए चल दिये ॥५२।।
'बहादुर पुरुषों से देवता भो उरते हैं उद्यमं साहसं धैर्य, बलबुद्धिपराक्रमम् । षडेते यस्य विद्यन्ते, तस्य देवोऽपि शङ्कते ।।५३।।
अर्थ-देवता गण भी उन भाग्यशालियों से डरते रहेंगे जिन्होंने अपने जीवन की शुरुआत से ही उद्यम, साहस, धैर्य, बल, बुद्धि, पराक्रम, ये छ गुणों को अपनाकर जीवन को सशक्त बनाया है । ये छ: गुण अन्योन्य कार्य कारण भाव से अङ्कित है, जैसे जो इन्सान उद्यम बिना का होता है, उसमें साहस गुण का विकास नहीं देखा जाता है, साहस रहित जीवन में धैर्य की प्राप्ति बुद्धदेव के शून्यबाद सदृश है, धैर्य के अभाव में मानसिक और वाचिक बल भो मृतप्राय सा होता है, और बल रहित पुरुष की वृद्धि भी परिमार्जित नही होती है, तथा बुद्धि रहित जीवन में पराक्रम के अंकुरों को जीवित दान कैसे मिल सकता है ?
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