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शेष विद्या प्रकाश ::
'कुपुत्र की निंदा एकेनापि सुपुत्रेण, सिंही स्वपिति निर्भयम् । सहैव दशभिः पुत्रेरिं वहति गर्दभी ।।४८॥
अर्थ-शूरवीर और निर्भय ऐसे एक ही पुत्र को जङ्गल की सिंहण जन्म देती है, फिर भी बच्चे के भरण पोषण की चिंता उस सिंहण को करने की नहीं होती है क्योंकि वह बच्चा स्वयमेव समर्थ है । परन्तु गर्दभी (गद्धी) जो जन्म समय में बहुत से बच्चों को जन्म देती है, परन्तु वे सब कायर होने के कारण मां के लिये भारभूत हैं ॥४८॥
'कुलीनता और अकुलीनता' किं कुलेन विशालेन विद्याहीनस्य देहिनाम् । अकुलीनोऽपि विद्यावान् देवैरपि पूज्यते ॥४९॥
अर्थ-अपनी खानदानी में, कुटुम्ब में यदि ज्ञान ध्यान, तप त्याग, सत्य, सदाचार, प्रभृति विद्यामूलक संस्कार नहीं है, तो चाहे जितने भी बड़े बंगले हो, मन पसन्द फर्नीचर हो, और विशाल कुटुम्ब हो, तथापि निश्चित समझना होगा कि उसकी खानदानी में, वस्तुपाल, तेजपाल, भामाशा, चन्दनबाला, राजीमतो और अनुपमादेवी जैसी संतान जन्म नहीं लेती है, दूसरी
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