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:: शेष विद्या प्रकाश 'सम्यग ज्ञान की प्रशंसा' अनेक संशयोच्छेदि परोक्षार्थस्य दर्शकम् । सर्वस्य लोचन शास्त्रं यस्य नास्त्यन्ध एव सः ॥९॥
अर्थ-अनेक संशयों का उच्छेदन करवाकर परोक्ष पदार्थ के ज्ञान में श्रद्धा उत्पन्न कराने वाला शास्त्र ज्ञान ही मानव की सच्ची ऑख हैं। जिसके पास सच्चा ज्ञान (राइट नोलेज) नहीं होता है वे वस्तुतः देखते हुए भी अन्धे हैं। क्योंकि शास्त्रीय ज्ञान से ही मानव का क्रूर स्वभाव दयालु बन जाता है। विकारी अांखें सत्दर्शक वनती हैं। दिल और दिमाग की दुष्टता और तुच्छता विलीन होती है, अत: दुनिया भर के ज्ञान की अपेक्षा शास्त्रीय ज्ञान महान् है ।।६।।
All other knowledge is harmful to him, who has no bozesty and good nature.
केवल पदस्थ होने के कारण ही बड़ों के दुर्गुण सदगुण नहीं होने पाते हैं। और केवल छोटे होने के कारण उनके सदगुण दुर्गुण नही होने पाते हैं।
- हीरादेवी चतुर्वेदी इन्सान भले ही मस्त हाथी का माथा फोड़ डाले किन्तु उसमें अगर इन्सानियत नहीं है तो वह हरगिज मर्द नहीं है।
आत्म-विश्वास निर्धनों का धन, दुर्बलों का बल, महापुरुषों का तेज और असहायों का सामर्थ्य है।
___-विजय वल्लभ सूरिजी
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