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शेष विद्या प्रकाश ::
:: २३ चौर्यः
दूसरों के धन को चोरना द्रव्य से चौर्यकर्म है तो मानव मात्र की मानवता, इज्जत, मान और उनकी वृत्ति तथा प्रवृत्ति को अपने स्वार्थ के खातिर बिगाड़ना, भाव से चौर्य-कर्म है। परदार सेवाः
अपने साथ जो अविवाहित है, वह चाहे कन्या हो या विधवा या सधवा उसका उपभोग द्रव्य से परदारा सेवन है तो संसार की माया में सीमातीत फंस कर जीवन को बर्बाद कर देना भी भाव से परदार गमन है, क्योंकि संसार की माया अपनी नहीं है ।।२३।।
___ 'मानवता का सार' बुद्धेः फलं तत्वविचारणं च
देहस्य सारं व्रतधारणश्च । अर्थस्य सारं किल पात्रदानं
वाचः फलं प्रीतिकरं नराणाम् ।।२४॥ अर्थ-देव दुर्लभ मनुष्य अवतार प्राप्त करने वाले प्रत्येक भाग्यशाली को बुद्धि, देह, अर्थ और भाषा मिली है। मानव और दानव में इतना ही अन्तर है कि मानव इन्हीं चारों वस्तुओं का सदुपयोग करता है, और दानव केवल अपने स्वार्थ को साधने के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं करता है ।
बुद्धि का उपयोग तत्त्वविचारणा में करना है कि "मैं कौन हूं? Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com