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शेष विद्या प्रकाश ::
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१. पापमार्ग में जाते हुए अपने को रोक सके । २. पवित्र कार्यो में अपने को सम्मिलित करे । ३. अपनी छुपी हुई बात को जो गुप्त रखे । ४. अपने छोटे से गुणों को भी बड़ा रूप दे । ५. आपत्ति के समय में भी अपने को न छोड़े। ६. समय पर अपने को मदद देकर स्थिर करे। जिनके साथ
अपने को दोस्ती बांधनी है और निभानी है, उस महानुभाव में ऊपर कही हुई छ: बातें अवश्यमेव होनी चाहिये ॥३७।।
'दाम्भिक पुरुष का जीवन' ये लुब्धचित्ता विषयादि भोगे
बहिर्विरागा हृदि बद्धरागाः। ते दाम्भिका वेषभृतश्च धूर्ताः
मनांसि लोकस्य तु रञ्जयन्ति ॥३८॥ अर्थ-जीवन के बाह्य व्यवहार में वैराग्य का रंग लगाया हुआ है, और प्रान्तर जीवन में पांच इन्द्रियों की भोग लालसा में जिन का मन राग द्वेष से भरा हुआ है। अर्थात् विषय वासनाओं से लदा हुआ जिनका मन है । संसार की स्टेज पर त्याग, तप, दान, पुण्य, अहिंसा, सत्य की बातें की जाती हैं और चर्ची जाती हैं, परन्तु अपने दैनंदिन (प्रतिदिन-प्रतिक्षण) के व्यक्तिगत जीवन में हिंसा का साम्राज्य है, भूठ का बोलबाला है ।
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