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३८ ::
:: शेष विद्या प्रकाश
'दया धर्म निर्गुणेष्वपि सत्त्वेषु दयां कुर्वन्ति साधवः । न हि संहरते ज्योत्स्ना चन्द्रश्चाण्डाल वेश्यसु ॥३६॥
अर्थ-चराचर संसार का भला करने का व्रतधारी चन्द्रमा अपनी चांदनी (प्रकाश) से चाण्डालों के या हरिजनों के घरों को भी प्रकाशित करता है, उसी प्रकार मानवता का पुजारी भी निर्गुण अर्थात् कामी, क्रोधी, दीन, दुःखी वगैरह आत्मिक और शारीरिक रोगियों पर भी दया करता है क्योंकि मध्यस्थ भाव व अनुकम्पा लक्षण से उद्भासित सम्यक्त्व (समकीत) ही उसका व्रत है ॥३६।।
___ 'मित्रता के लक्षण पापान्निवारयति योजयते हिताय
गुह्य निगृहति गुणान् प्रकटी करोति । आपद्गते च न जहाति ददाति काले
सन्मित्रलक्षणमिदं प्रवदन्ति सन्तः ॥३७॥
अर्थ-शास्त्रों में मित्रों का, सन्मित्रों का लक्षण इस प्रकार बतलाया गया है कि
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