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:: शेष विद्या प्रकाश
अंडे और शराब से पेट दूषित है, तथा त्याग और तप से जीवन हजारों कोस दूर है। ऐसे पंडित, कवि, कथाकार, संगीतकार, वक्ता तथा राष्ट्रनेता दाम्भिक है. जो अपनी बाह्य प्रवृत्ति से संयम और सेवा का उपहास करते हुए, समाज के, राष्ट्र के, मन को रंजित कर सकते हैं, परन्तु अपनी आत्मा को अपने आत्मदेव को कभी भी प्रसन्न नहीं कर सकते हैं ॥३८।।
'पुत्र रहित का जीवन'
अपुत्रस्य गति स्ति, स्वर्गों नैव च नैव च । तस्मात्पुत्रमुखं दृष्ट्वा, स्वर्गं गच्छन्ति मानवाः ॥३९।।
अर्थ-ब्राह्मण शास्त्र का यह कथन है कि जिन्होंने गृहस्थाश्रम जीवन स्वीकार नहीं किया है, ऐसे भाग्यशालियों का पुत्र रहित जीवन होने से स्वर्ग में गमन नहीं होता है अर्थात् सदगति नहीं होती है, अतः पुत्र के मुख को देखकर ही देव लोक के सुख की प्राप्ति होती है ॥३६।।
आदमी हर तरह के व्याघ्र, शेर, सांप, सांड, हाथी और देवता को भी साध सकता है और साधता रहता है परन्तु अपनी जबान को साधना कठिन है। जबान एक निरंकुश चीज है उसके
अन्दर घातक विष भरा हुआ है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com