________________
शेष विद्या प्रकाश ::
:: ४१
'ब्रह्मचर्याश्रम की श्रेष्ठता' अनेकानि सहस्राणि-कुमार ब्रह्मचारिणाम् । दिवंगतानि विप्राणामकृत्वा कुल संततिम् ।।४।।
अर्थ-उन्हीं ब्राह्मण सूत्रों में आगे चलकर वही स्मृति शास्त्र इस बात की उदघोषणा करता है कि गृहस्थाश्रम जीवन से भी ब्रह्मचर्याश्रम जीवन लाखों वार श्रेष्ठतम है, क्योंकि ब्रह्मचर्य जीवन से ही हजारों लाखों की संख्या में ब्राह्मणों के कुमारों ने विवाह शादी लग्न किये बिना ही स्वर्ग के सुखों को प्राप्त किया है ।।४०।।
'रात्रि भोजन पाप है। अस्तंगते दिवानाथे आपो रुधिर मुच्यते । अन्न च मांस समं प्रोक्तं मार्कण्डेन ऋषिणा ॥४१॥
अर्थ-अहिंसक जीवन के परम उपासक मार्कण्ड नामक ऋषि ब्राह्मण शास्त्रों के अच्छे ज्ञाता थे, तपस्वी थे। उन्होंने अपने रचे हुए मार्कण्डेय पुराण में कहा है कि जिस प्रकार घर का मालिक मरा हुआ हो और उसका शव अभी घर में पड़ा हो तब घर का कोई भी आदमी भोजन पानी नहीं करता है। उसी प्रकार दिन का स्वामी सूर्यनारायण भी अस्ताचल पर चले गये हों तब अन्न खाना मांस खाने के बराबर है, और पानी (जल) पीना लोही के समान है ।।४१॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com