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:: शेष विद्या प्रकाश
'सच्चा शूर, पंडित, वक्ता, दाता कौन है ?"
इन्द्रियाणां जये शूरो, धर्मं चरति पण्डितः । सत्यवादी भवेदवक्ता, पाता भूता भय प्रदः ||४५||
अर्थ- परन्तु अनुभवियों का तो यह कहना है कि शरीर रूपी रथ के साथ जो इन्द्रिय रूपी घोड़े जुते हुए हैं उन घोड़ों के मुंह में ज्ञानरूपी लगाम डाल कर उनको सन्मार्ग में जोड़े वह सच्चा शूरवीर है। धर्म की चर्चा, या धर्म के व्याख्यान करने मात्र से वह पण्डित नहीं है, परन्तु अपने मुंह से निकले हुए धर्म के सिद्धान्तों को अपने ही जीवन में उतारे, अर्थात प्राचरण में लावे वही सच्चा पण्डित है ।
अपने वक्तृत्व के द्वारा हजारों लाखों को रुलाने या हंसाने वाला तो कोरा वाचाल है, परन्तु वह जो कुछ भी बोले प्रिय, पथ्य, हितकारी और मनोज्ञ भाषा में यथार्थवाद को बोले वही सत्य रूप में वक्ता है ।
जिसमें केवल अपनी नामना हो, और किसी भी दीन, दुःखियारे का भला न हो ऐसा हजारों लाखों का किया हुआ दान भी कुत्ते की पूंछ के माफिक निरर्थक और निष्फल है, परन्तु प्राणि मात्र को अभयदान देने वाली प्रवृत्ति या वृत्ति ही दाता का लक्षण है ॥ ४५ ॥
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