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शेष विद्या प्रकाश ::
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'उम्र का लेखा जोखा' आयुर्वर्षशतं नृणां परिमितं रात्रौतदर्ध गतं तस्यार्धस्य परस्य चार्धमपरं बालत्ववृद्धत्वयोः । शेषं व्याधि-वियोग-दुःख सहितं सेवादिभिर्नीयते जीवे वारितरङ्ग चञ्चलतरे सौख्यं कुतः प्राणिनाम् ॥३१।।
अर्थ-मनुष्य का आयुष्य अनुमानत १०० वर्ष का मान लें तो उसमें से ५० वर्ष रात्रि के निद्रा देवी की गोद में पूरे हो जाते हैं, शेष जीवन के १२।। वर्ष का बाल्यकाल और १२।। वर्ष का अन्तिम काल मिलाकर २५ वर्ष और गये, अब शेष २५ वर्ष ही रहे, उसमें से भी प्राधि कभी व्याधि, कभी संयोग और वियोग आदि गहस्थाश्रम की आपत्तियों में, इस जीवात्मा का पूरा प्रायुष्य खत्म हो जाता है, महान् योगीराज श्री भर्तृहरिजी मनुष्य मात्र को संबोधन करते हुए कह रहे हैं कि ऐ भाग्यवानों
आप शीघ्रता से सावधान बनकर धर्म ध्यान की उपासना करें, जिससे सुख की प्राप्ति हो सके ।।३१।।
मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः । जीवन को सुधारने और बिगाड़ने में मन ही मुख्य कारण है।
ज्ञानक्रियाभ्यां मोक्षः।
सम्यगज्ञान और सक्रिया ही मोक्ष का मुख्य कारण है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com