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शेष विद्या प्रकाश ::
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'शत्रुओं का भी हितचिन्तन' जीवन्तु मे शत्रुगणाश्च सर्वे
येषां प्रसादेन विचक्षणोऽहम् । यदा यदा मां भजते प्रमादः
तदा तदा ते प्रतिबोधयन्ति ॥३३॥
अर्थ-मेरे दुश्मन भी लम्बा आयुष्य प्राप्त करें। जिनकी कृपा से ही मैं हमेशा जागृत रहता हूं, जब कभी मुझे प्रमाद प्राता है, अर्थात् कर्त्तव्य भ्रष्ट होकर जब मैं उल्टा सुलटा सोचता हूं, तब मुझे मेरे शत्रुओं से भय लगता है कि ये दुश्मन मेरी निन्दा करेंगे, या मेरा अपजस बोलेंगे, इसलिए मुझे जागत, तथा विवेक के मार्ग पर स्थिर रखने में तथा आध्यात्मिक क्रांति लाने में शत्रु वर्ग का पूरा साथ है, अतः व्यक्ति या समाज के लिये शत्र वर्ग का होना नितान्त आवश्यक है ।।३३।।
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