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:: शेष विद्या प्रकाश
कहां से आया हूं ? मरकर कहां जाना है ? मेरा क्या कर्त्तव्य है ? और मैं क्या कर रहा हूं ? इन पांचों प्रश्नों का उत्तर एकान्त में बैठकर अपनी आत्मा से लेना ही बुद्धि का उपयोग है ।
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शरीर का उपयोग व्रत धारण करने में है ( Move Himself) का अर्थ यही है कि दूसरों को हानि में उतरना पड़े ऐसे पाप कार्यों से अपने शरीर को निकालकर अच्छे सत्कर्मों में शरीर का उपयोग करना चाहिए, जिससे जीवन में आनन्द आ सके। रावण दुर्योधन, कंस और शूर्पणखा के पास सत्ता, श्रीमंताई और युवावस्था तथा भोग उपयोग के साधन परिपूर्ण मात्रा में थे, तथापि उनका जीवन संयमित न होने के कारण जीवन का प्रानन्द प्राप्त नहीं कर सके और दूसरों के हाथ से मरकर अपजस के पात्र बने । अत: भगवान महावीर स्वामी, रामचन्द्रजी, और युधिष्ठिर के माफिक शरीर को व्रतधारी बनाना चाहिए ।
धन का उपयोग सत्पात्र के पोषण में, तपस्वियों की सेवा में और दीन दुखियों के उद्धार में करना चाहिए । धवल सेठ, मम्मणसेठ के पास खुद धन था फिर भी न किसी को दिया न खाया और नरक के मेहमान बन गये । वस्तुपाल, तेजपाल, भामाशा, जगडुसेठ ने धन का सदुपयोग किया, अतः त्यागी मुनियों ने भी इनके गुण गाये, कवियों ने कविताएं रची और चित्रकारों ने भी चित्र बनाये और इतिहास के पृष्ठों में अमर हो गये ।
बाणी का उपयोग मधुर, सत्य, प्रिय और अहिंसक भाषा
बोलने में करना चाहिए ||२४||
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