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शेष विद्या प्रकाश ::
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और अपनी धर्मपत्नी को छोड़कर परस्त्री से प्रेम करना। ये सात व्यसन भवपरंपरा में दुःखदायक हैं और मरने पर रौरव, वैतरणी नामक नरकावासों को देने वाले होते हैं, सातों के सेवन से या एकाध के सेवन से भी व्यक्ति में तो दोष आता ही है परन्तु समाज, कुटुम्ब, गांव और समूचा राष्ट्र भी दोषों से परिपूर्ण होता हुअा पराधीनता की बेड़ियों में फंसकर दुःखी बनता है।
जूआ:
सट्टे के व्यापार में, रेस के घोडों में और प्लेइंग कार्ड से रमी के व्यापार में, भारतवर्ष का व्यापारी वर्ग, युवक वर्ग, बुद्धिजीवी वर्ग बेहाल होता हुआ नैतिक अध:पतन के गर्त में कितनी तेजी से जा रहा है। यह जैसे द्रव्यद्य त है तो संसार रूपी जूमाघर (Gambling House) में मोहराज के साथ मैत्री करके, सत्यता, प्रमाणिकता, नीति और मानव-प्रेम को खो देना भी भावधूत है।
मांस:
जानवरों के मांस को और अंडों को खाना द्रव्यमांस है, तो कन्या विक्रय या वर विक्रय की कमाई भी भाव से मांस भोजन तुल्य है, अच्छे अच्छे विद्वानों या शास्त्रवेत्ताओं से चच करने पर ही शीघ्रता से अपन समझ सकते हैं कि ये दोनों दुर्गुणों से समाज की क्या दुर्दशा हुई है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com