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:: शेश विद्या प्रकाश 'विद्या का प्रभाव विद्वत्त्वं च नृपत्वं च नैव तुल्यं कदाचन । स्वदेशे पूज्यते राजा, विद्वान् सर्वत्र पूज्यते ।।११॥
अर्थ-विद्वान् और राजा में यदि तुलना की जाय तो राजा से भी विद्वान ज्यादा पूज्य है, क्योंकि राजा तो अपने देश में, प्रान्त में ही बड़ा माना जाता है, और अपनी प्रजा के लिए ही महान् है, परन्तु विद्वान पुरुष तो जहां जाता है वहां सबका पूज्य बनता है। इससे ही मालूम पड़ता है कि श्रीमंताई और सत्ता से भी विद्वता को कीमत ज्यादा है ।।११।।
'धर्म'
पञ्चैतानि पवित्राणि, सर्वेषां धर्म चारिणाम् । अहिंसा-सत्यमस्तेय-त्यागो मैथुनवर्जनम् ॥ १२ ॥
अर्थ-भारतवर्ष के धर्माचार्यों ने पवित्रतम पांच सिद्धांतों का प्रतिपादन किया है । इतना ही नहीं परन्तु मन, वचन, काया से अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और निष्परिग्रह को अपने जीवन में उतार कर गहस्थाश्रमियों को भी अंशतः परिपालन करने का सफल उपदेश देते हुए कहा कि हिंसा भाव का त्याग, असत्य-मृषावाद का त्याग, स्तेय-चौर्य कर्म का त्याग, मैथुन का त्याग–अर्थात् परस्त्री को माता तरीके मानना और स्वस्त्रीविवाहित स्त्री में मर्यादित रहना, और भोग्य तथा उपभोग्य
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