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शेष विद्या प्रकाश ::
'क्षमाधर्म की उपादेयता'
क्षमाबलमशक्तानां, शक्तानां भूषणं क्षमा । क्षमावशीकृतिलोंके, क्षमया किं न सिद्धयति ॥१८॥
अर्थ- पूर्वभवीय साधना कमजोर होने से, इस भव में जो इन्सान दिल और दिमाग को कमजोर लेकर जन्मे हैं, ऐसों के लिए भी क्षमाधर्म ही लाभदायक है, और जो मानसिक, वाचिक
और कायिक बल लेकर जन्मे हैं उनके लिये भी क्षमाधर्म हो सर्वश्रेष्ठ सिद्धिदायक है, क्योंकि यह क्षमाधर्म वशीकरण मन्त्र के तुल्य है, अर्थात संसार में ऐसा कोई भी कार्य नहीं है जो क्षमा से सिद्ध न हो सके । क्रोध, मान, माया और लोभ से जो सिद्धी होती है, वह लम्बे काल तक रहने वाली भी नहीं है, और अन्त में जीवन को दुःखी बना देती है ।।१८।।
___ सब के सब धर्मशास्त्रों में धर्म का रहस्य यही है कि जीव मात्र के साथ मैत्री भाव का विकास, परोपकार, और समता प्रधान जीवन ।
-न्याय विजयजी किसी भी युग में या किसी भी काल में क्रिया कांड एक सा हुआ ही नहीं है।
-न्याय विजयजी ___ लोकरजन और सत्य भाषण इन दोनों में परस्पर कट्टर बैर है, अत: लोकरजन की उपेक्षा करके सत्यभाषण में ही आग्रह रखना चाहिए।
-न्याय विजयजी
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