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:: शेष विद्या प्रकाश
'धर्महीन की निन्दा येषां न विद्या न तपो न दानं, ___ ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः । ते मृत्युलोके भुवि भार भूताः ,
__ मनुष्य रूपेण मृगाश्चरन्ति ॥१४॥ अर्थ- देवदुर्लभ मनुष्य अवतार को प्राप्त करके जिन्होंने अपने जीवन में:
१. विद्या ( सा विद्या या विमुक्तये ) की साधना नहीं की। २. पापों के प्रायश्चित में तपश्चर्या की साधना नहीं की । ३- श्रीमंताई होते हुए भी गरीबों को भला नहीं कर सके । ४. शरीर, इन्द्रिय, मन और बुद्धि से मेरी आत्मा सर्वथा भिन्न __ है ऐसा ज्ञान प्राप्त नहीं कर सके । ५. शारीरिक, वाचिक और मानसिक शक्तियों का संग्रह कराने
वाले ब्रह्मचर्य की उपासना नहीं कर सके । ६. सद्गुणों की प्राप्ति में सर्वथा बेदरकार रहे ।
ऐसे मनुष्य मृत्युलोक में भारभूत हैं, अर्थात् मनुष्य के अवतार में केवल पाशविकता को ही उपार्जन करके जीवन निन्दनीय बनाया है ।।१४।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com