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शेष विद्या प्रकाश ::
जिनकी साहित्य सेवा अमर है । जिनका वक्तृत्व अमर है। जिनकी अहिंसा और ब्रह्मचर्य की आराधना अमर है और वोसवीं शताब्दि को प्रद्योत करता हुया, जिनका जीवन अमर है ।।७॥
'गुरु स्तुति
हिमांशुवत्सदा भाति, पूर्णानन्दप्रदोदिवि । दान्तः शान्तो गुरुर्ज्ञानी श्री विद्यात्रिजयो मम ||८||
अर्थ- जैन समाज रूपी निर्मल आकाश में शुक्र के तारे से चमकते हुए जिन महापुरुष ने अपने वक्तृत्व और साहित्य रचना के द्वारा अपने विरोधियों को भी पूर्ण आनन्द प्राप्त करवाया है । संयम की साधना के द्वारा स्वयं जितेन्द्रिय बनकर हजारों को जितेन्द्रिय बनाया है।
जिनका जोवन शान्त है, वक्तृत्व शान्त है, अर्थात् सम्यक्त्व के प्रथम लक्षण को अच्छी तरह से जीवन में उतारा था ।
श्रुति, युक्ति और अनुभूति पूर्ण जिनकी प्रवचन शक्ति में ज्ञान का समुद्र लहराता था। ऐसे सौम्यमुद्रा के धारक, शासन और समाज के हितचिन्तक, पूज्यपाद, शासनदीपक , मेरे गुरुदेव श्री विद्याविजयजी महाराज स्वर्ग में भी हिमांशु-चन्द्र के सदृश शोभायमान हैं ।। ८ ॥
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