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:: शेष विद्या प्रकाश काया की एकाग्रतापूर्वक पठन पाठन के द्वारा उनकी ज्ञान गरिमा ने, न्याय, व्याकरण, साहित्य, पागम, नियुक्ति, भाष्य
णि और टीका ग्रन्थों में गुथित केवलि भगवंतों के वाङ्मय को हृदयंगम किया और भारतीय महापंडितों को तथा जर्मन, इटाली, फ्रांस, लंदन इत्यादि देशों के दिगगज विद्वानों को अपने चरणकमलों का दास बनाया। विद्वत्ता, अहिंसा, संयम और तप की महिमा को पाबाल गोपाल तक पहुंचाया।
युक्तियों से हार खाकर जिनकी क्रोध की सीमा दुर्वासा ऋषि तक पहुंच जाती थी, उन महापंडितों की, विरोधियों की, और हठाग्रहियों को क्रोधाग्नि को अपने सर्वोत्कृष्ट क्षमा धर्म रूपी मेघ के द्वारा शांत किया। सूर्य के समान देदीप्यमान बना हुआ जिस महापुरुष का ब्रह्मचर्य रूपी महान् तप, जैन समाज में बंगाल, बिहार, उड़ीसा, उत्तरप्रदेश प्रभृति मांसाहारी प्रदेशों में अहिंसा और सदाचार धर्म को उद्योत करता हा खूब चमका था।
__ संसार के ख्यातिनाम पंडितों ने, विद्वानों ने, गवर्नरों ने तथा राजा महाराजाओं ने जिन पुण्यात्मा के चरणों की उपासना की थी। वे शास्त्रविशारद, जैनाचार्य, युगप्रधान स्व. श्री १००८ श्री विजय धर्ममूरीश्वरजी महाराज अमरतपो।
जो शान्त मूर्ति पूज्य श्री वृद्धि चन्द्र जी महाराज के मुख्य पट्टधर थे और शासन सम्राट जैनाचार्य श्री १००८ श्री विजय नेमिसूरीश्वरजी महाराज के बड़े गुरुभ्राता थे। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com