Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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३, ४.]
पयडिबंधवोच्छेदपरूवणपइण्णा एदस्स सुत्तस्स अत्थो जहा जीवट्ठाणे वित्थरेण परूविदो तहा एत्थ परूवेदव्वो, विसेसाभावादो । एवं चोदसण्हं जीवसमासाणं सरूवं संभालिय बंधसामित्तपरूवणमुत्तरसुत्तं भणदि
___ एदेसि चोदसण्हं जीवसमासाणं पयडिबंधवोच्छेदो कादवो भवदि ॥४॥
जदि जीवसमासाणं पयडिबंधवोच्छेदो चेव उच्चदि तो एदस्स गंथस्स बंधसामित्तविचयसण्णा कधं घडदे ? ण एस दोसो, एदम्मि गुणट्ठाणे एदासिं पयडीणं बंधवोच्छेदो होदि त्ति कहिदे हेट्टिल्लगुणट्ठाणाणि तासिं पयडीण बंधसामियाणि त्ति सिद्धीदो। किं च वोच्छेदो दुविहो उप्पादाणुच्छेदो अणुप्पादाणुच्छेदो चेदि । उत्पादः सत्वं, अनुच्छेदो विनाशः अभावः नीरूपिता' इति यावत् । उत्पाद एव अनुच्छेदः उत्पादानुच्छेदः, भाव एव अभाव इति यावत् । एसो दव्वट्ठियणयव्यवहारो। ण च एसो एयंतेण चप्पलओ, उत्तरकाले अप्पिदपज्जायस्स
इस सूत्रका अर्थ जैसे जीवस्थानमें विस्तारसे कहा गया है वैसे ही यहां भी कहना चाहिये, क्योंकि, जीवस्थानसे यहां कोई विशेषता नहीं है । इस प्रकार चौदह 'जीवसमासोंके स्वरूपका स्मरण कराकर बन्धस्वामित्वके निरूपणार्थ उत्तर सूत्र कहते हैं
इन चौदह जीवसमासोंके प्रकृतिबन्धव्युच्छेदका कथन करने योग्य है ॥ ४ ॥
शंका-यदि यहां जीवसमासोंका प्रकृतिबन्धव्युच्छेद ही कहा जाता है तो फिर इस ग्रन्थका ‘बन्धस्वामित्व' यह नाम कैसे घटित होगा?
समाधान---यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, इस गुणस्थानमें इतनी प्रकृतियोंका बन्धव्युच्छेद होता है, ऐसा कहनेपर उससे नीचेके गुणस्थान उन प्रकृतियोंके बन्धके स्वामी हैं, यह स्वयमेव सिद्ध हो जाता है । दूसरी बात यह है कि व्युच्छेद दो प्रकारका है- उत्पादानुच्छेद और अनुत्पादानुच्छेद । उत्पादका अर्थ सत्व और अनुच्छेदका अर्थ विनाश, अभाव अथवा नीरूपीपना है। 'उत्पाद ही अनुच्छेद उत्पादानुच्छेद ' ( इस प्रकार यहां कर्मधारय समास है)। उक्त कथनका अभिप्राय भावको ही अभाव बतलाना है। यह द्रव्यार्थिक नयके आश्रित व्यवहार है। और यह एकान्त रूपसे अर्थात् सर्वथा मिथ्या भी नहीं है, क्योंकि, उत्तरकालमें विवक्षित पर्यायके विनाशसे विशिष्ट द्रव्य पूर्व
१ प्रतिषु · निरूपिता' इति पाठः ।
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