Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
View full book text
________________
छक्खंडागमे बंधसामित्तविचओ
[३, २. ओघेण बंधसामित्तविचयस्स चोदसजीवसमासाणि णादव्वाणि भवंति ॥ २॥
'जहा उद्देसो तहा णिद्देसो' त्ति जाणावणट्ठमोघेणेत्ति उत्तं । बंधसामित्तविचयस्सेत्ति संबंधे छट्ठी दट्ठव्वा । अधवा, बंधसामित्तक्चिए इदि विसयलक्खणसत्तमीए छट्ठीणिदेसो कायव्यो । पुव्वमवगया चेव चौदसजीवसमासा, पुणो ते एत्थ किमटुं परूविज्जते ? ण एस दोसो विस्सरणालुअसिस्ससंभालणत्तादो।
मिच्छाइट्ठी सासणसम्माइट्ठी सम्मामिच्छाइट्टी असंजदसम्माइट्ठी संजदासंजदा पमत्तसंजदा अप्पमत्तसंजदा अपुवकरणपइट्टउवसमा खवा अणियट्टिबादरसांपराइयपइट्ठउवसमा खवा सुहुमसांपराइयपइट्ठउवसमा खवा उवसंतकसायवीयरागछदुमत्था खीणकसायवीयरायछदुमत्था सजोगिकेवली अजोगिकेवली ॥३॥)
ओघकी अपेक्षा बन्धस्वामित्वविचयके चौदह जीवसमास जानने योग्य हैं ॥ २ ॥
'जैसा उद्देश वैसा निर्देश होता है ' इसके ज्ञापनार्थ · ओघसे' ऐसा कहा है । 'बन्धस्वामित्वविचयके' यह सम्बन्धमें षष्ठी विभक्ति जानना चाहिये । अथवा 'बन्धस्वामित्वविचयमें' इस प्रकार विषयाधिकरण लक्षण सप्तमी विभक्ति के स्थानमें षष्ठी विभक्तिका निर्देश करना चाहिये ।
शंका-चौदह जीवसमास पूर्वमें जाने ही जा चुके हैं, फिर उनकी यहां प्ररूपणा किसलिये की जाती है ?
समाधान-यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, यह कथन विस्मरणशील शिष्योंके स्मरण करानेके लिये है।
मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि, असंयतसम्यग्दृष्टि, संयतासंयत, प्रमत्तसंयत, अप्रमत्तसंयत, अपूर्वकरणप्रविष्ट उपशमक व क्षपक, अनिवृत्तिबादरसाम्परायिकप्रविष्ट उपशमक व क्षपक, सूक्ष्मसाम्परायिकप्रविष्ट उवशमक व क्षपक, उपशान्तकषाय वीतरागछद्मस्थ, क्षीणकषाय वीतरागछद्मस्थ, सयोगिकेवली और अयोगिकेवली, ये चौदह जीवसमास हैं ॥३॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org