Book Title: Shatkhandagama Pustak 02
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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षट्खंडागमकी प्रस्तावना
समाधान — भूतबलिको गौतम माननेका प्रयोजन ही क्या है ?
६ शंका - यदि भूतबलिको गौतम न माना जाय तो मंगलको निबद्धपना कैसे प्राप्त हो सकता है ?
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समाधान - क्योंकि भूतबलिके खंडग्रंथ के प्रति कर्तापनेका अभाव है । कुछ दूसरे के द्वारा रचे गये ग्रंथाधिकारोंमेंसे एक देशका पूर्व प्रकारसे ही शब्दार्थ और संदर्भका प्ररूपण करनेवाला ग्रंथकर्ता नहीं हो सकता क्योंकि इससे तो अतिप्रसंग दोष अर्थात् एक ग्रंथके अनेक कर्ता होनेका प्रसंग आ जायगा । अथवा, दोनोंका एक ही अभिप्राय होनेसे भूतबलि गौतम ही है । इसप्रकार यहां निबद्ध मंगलत्व भी सिद्ध हो जाता है ।
पर प्रथम शंका समाधानमें यह स्पष्ट कर दिया गया है कि वेदनाखंड के अन्तर्गत पूरा वेदना और वर्गणा- महाकम्मपयडिपाहुडका विषय नहीं है - वह उस पाहुडका एक अवयव मात्र है, अर्थात् उसमें उक्त पाहुडके चौवीसों अनुयोगद्वारोंका अन्तर्भाव नहीं किया जा सकता । महाकर्मप्रकृतिपाहुड अवयवी है और वेदनाखंड उसका एक अवयव ।
खंडोंकी सीमाओं का निर्णय
दूसरे शंका समाधानसे यह सूचना मिलती है कि कृति आदि चौवीस अनुयोगद्वारों में अकेला वेदनाखंड नहीं फैला है, वेदना आदि खंड हैं अर्थात् वर्गणा और महाबंध का भी अन्तर्भाव वहीं है । तीसरे शंका समाधानमें कर्मप्रकृतिपाहुड के कृति आदि अवयवों में भी एक दृष्टिसे पाहुडपना स्थापित करके चौथेमें स्पष्ट निर्देश किया गया है कि वेदनाखंड में गौतमस्वामीकृत बड़े विस्तारवाले वेदना अधिकारका ही उपसंहार अर्थात् संक्षेप है । यह वेदना धवलाकी अ. प्रतिमें पृ. ७५६ पर प्रारम्भ होती है जहां कहा गया है
कम्म जणिय वेयण उवहि समुत्तिष्णए जिणे णमिउँ । यणमहाहियारं विविहहियारं परूवेमो ॥
और वह उक्त प्रतिके ११०६ वें पत्रपर समाप्त होती है जहां लिखा मिलता है-
' एवं वेयण - अप्पा बहुगाणिओगद्दारे समन्ते वेयणाखंड समन्ता ।
इसप्रकार इस पुष्पिकावाक्यमें अशुद्धि होते हुए भी वहां वेदनाखंडकी समाप्तिमें कोई शंका नहीं रह जाती ।
पांचवें और छठवें शंका समाधानमें भूतबलि और गौतममें ग्रंथकर्ता व अभिप्रायकी अपेक्षा एकत्व स्थापित किया गया है जो सहज ही समझमें आजाता है । इसप्रकार उक्त मंगल निबद्ध भी सिद्ध करके बता दिया गया है ।
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