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बाईसवाँ बोल-१५
होता । कारण यह है कि आयुष्य कर्म एक भव में एक बार ही बन्धता है और वह भी अन्तर्महर्त्तकाल मे बन्यता है । अगर अनुप्रेक्षा करने वाला ससार मे रहता है तो भी वह अशुभ कर्म नही बाधता है, यदि वह मोक्ष जाता है तो आयुष्य कर्म का बन्ध ही नहीं करता । इस प्रकार अनुप्रेक्षा करने वाले को कदाचित् आयुष्य कम बन्धता है, कदाचित नही बन्धता । इसी कारण यहा आयुष्य-कर्म छोड दिया गया है।
___ अनुप्रेक्षा से और क्या लाभ है ? इस विषय मे कहां गया है-अनुप्रेक्षा करने वाला असातावेदनीय कर्म का बारबार उपचय नही करता अर्यात् बार-बार उसका बन्ध नही करता । यहाँ सूत्रपाठ मे 'च' अक्षर भी आता है । वह इस बात का द्योतक है कि असातावेदनीय कर्म के समान अन्य अशुभ प्रकृतियां भी अनुप्रेक्षा करने वाला नही बावता ।।
यहाँ पर यह शका की जा सकती है कि मूल पाठ में 'भुज्जो भुज्जो' अर्थात् बार-बार पद का प्रयोग किस प्रयोजन से किया गया है ?
इस आशका का समाधान यह है कि उक्त पद का प्रयोग करने का आशय यह प्रतीत होता है कि प्रमत्त गुणस्थान मे वर्तमान जीव कदाचित् असातावेदनीय कर्म का बन्ध करता है, परन्तु वह बार-बार बन्ध नही करता। इसके अतिरिक्त पाई टीका के अनुसार यहाँ यह पाठान्तर भी है
सायावेयणिज्जं च णं कम्मं भुज्जो भुज्जो उदचिणई। अर्थात्-अनुप्रेक्षा करने वाला बार-बार सातावेदनीय