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सभ्य शाम का पोटिका )
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प्रभाग विषै नानागुणहानि, गुणहानि, द्वयर्द्धगुणहानि, दो गुणहानि, अन्योन्याभ्यस्त इनका प्रमाणपूर्वक अल्पबहुत्व का कथन है ।
बहुरि तीसरी दशकरणचूलिका का व्याख्यान विषे बंध, उत्कर्षरण, संक्रम, are सत्त्व उन उपवन, विधि, निचना - इन दशकरणनि के नाम का स्वरूप का, जिनि-जिनि प्रकृतिनि विषै वा गुणस्थाननि विषे जैसे संभव free aa है |
बहुरि पांचवां गंध उदय सस्यसहित स्थानसमुत्कीर्तन नामा अधिकार विषै मंगलाचरण कर एक जीव के युगपत् संभवतां बंधादिक प्रकृतिनि का प्रमाणरूप स्थान वा तहां प्रकृति बदलने करि भये भंगनि का वर्णन है । तहां मूल प्रकृतिनि के बंधस्थाननि का अर तहां संभवते भुजाकारादि बंध विशेष का अर भुजाकार, अपर अवस्थित अवक्तव्यरूप बंध विशेषनि के स्वरूप का, अर मूल प्रकृतिनि के उदयस्थान, उदीरास्थिान, सस्वस्थाननि का वर्णन है । बहुरिउत्तर प्रकृतिनि का कथन विषे दर्शनावरण, मोहनीय, नाम की प्रकृतिनि विषै विशेष है ।
तहां दर्शनावरण के बंधस्थाननि का, अर तहां गुरणस्थान अपेक्षा भुजाकारादि विशेष संभवने का, पर दर्शनावरण के गुणस्थाननि विषै संभवते बंधस्थान, उदयस्थान, सत्त्वस्थानति का वर्णन है ।
बहुरि मोहनीय के बंघस्थाननि का, घर ते गुणस्थाननि विषै जैसे संभव ताका, र तहां प्रकृतिति के नाम जानने की ध्रुवबंधी प्रकृति, वा कूटरचना आदिक का, सर तहां प्रकृति बदलने ते भए संगति का, अर तिन बंबस्थाननि विषै संभवते भुजाकारादि विशेषनि का, वा भुजाकारादिक के लक्षण का, वा सामान्य अवक्तव्य भंग की संख्या का, मर भुजाकारादि संभवने के विधान का, अर इहां प्रसंग पाइ गुणस्थाननि विषै चढना उतरना इत्यादि विशेषनि का वर्णन है । बहुरि मोह के उदयस्थाननि का, अर गुणस्थाननि विषें संभवता दर्शनमोह का उदय कहि तहां संभवते मोह के उदयस्थाननि का, अर तहां प्रकृत्यादि के जानने कूं कूटरचना आदि का, श्रर तहां प्रकृति बदलने तैं भए भंगनि का, पर अनिवृत्तिकरण विषै वेदादिक के उदयकालादिक का, अर सर्वमोह के उदयस्थान, घर तिनकी प्रकृतिनि का विधान : वा संख्या वा मिलाई हुई संख्या का, भर गुणस्थाननि विषै संभवते उपयोग, योग, संयम, लेश्या, सम्यक्त्व तिनकी अपेक्षा मोह के उदयस्थाननि का, वा तिनकी प्रकृतिनि