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। गोम्मटसार कर्मकाण्ड सम्बन्धी प्रकरण स्वरूप कहि गुणस्थाननि विर्षे सामान्य सत्त्व प्रकृतिनि का वर्णन करि विशेष वर्णन वि मिथ्यादृष्ट्यादि गुणस्थाननि विर्षे जेते स्थान वा भंग पाइए तिनकौं कहि जुदा-जुदा कथन विर्षे तिनका विधान वा प्रकृति घटने, बधने, बदलने के विशेष का बद्धायु-प्रबद्धायु अपेक्षा वर्णन है । तहां प्रसंग पाइ मिथ्यादृष्टि विथें तीर्थंकर सत्तावाले के नरकायु ही का सत्त्व होइ ताका, बा एकेंद्रियादिक के उद्वेलना का पर सासादन विर्षे प्राहार सत्ता के मिशेर का, गा बि सराहगुएंधी हि लत्वस्थान जैसे संभव ताका, असंयत विर्ष मनुष्यायु-तीर्थकर सहित एक सौ अडतीस प्रकृति की सत्तावाले मैं दोय वा तीन ही कल्याणक होइ ताका, अपूर्वकरणादि वि उपशमक-क्षपक श्रेणी अपेक्षा का इत्यादि अनेक वर्णन है । बहुरि प्राचार्यनि के मतकरि जो विशेष है ताकी कहि तिस अपेक्षा कथन है।
बहुरि चौथा त्रिचूलिका नामा अधिकार है । तहां प्रथम नव प्रश्नकरि चूलिका का व्याख्यान है । तिसविर्षे पहिले तीन प्रश्नकरि तिनका उत्तर विर्षे जिन प्रकृतिनि की उदयव्युच्छित्ति ते पहिले बंधव्युच्छित्ति भई तिनका, अर जिनकी उदयव्युच्छित्ति से पीछे बंधव्युच्छित्ति भई तिनका, अर जिनकी उदयव्युच्छित्ति-बंधव्युमिछत्ति युगपत् भई तिनका वर्णन है । बहुरि दूसरा - तीन प्रश्नकरि तिनका उत्तर विषं जिनका अपना उदय होते ही बंध होइ तिनका, अर जिनका अन्य प्रकृतिनि का उदय होते ही बंध होइ तिनका, पर जिनका अपना वा अन्य प्रकृतिनि का उदय होते बंध होय तिन प्रकृतिनि का वर्णन है । बहुरि तीसरा - तीन प्रश्नकरि तिनका उत्तर विषै, जिनका निरन्तर बंध होइ तिनका, अर जिनका सांतर बंध होइ तिनका, अर जिनका सांतर वा निरंतर बंध होइ तिनका कथन है । इहां तीर्थंकरादि प्रकृति निरंतर बंधी जैसे है ताका, पर सप्रतिपक्ष-निःप्रतिपक्ष अवस्था विर्षे सांतर-निरंतर बंध जैसे संभव है ताका वर्णन है। .
बहुरि दूसरी पंचभागहारचूलिका का व्याख्यान वि मंगलाचरणकरि उद्वेलन, विध्यात, अधःप्रवृत्त, गुणसंक्रम, सर्वसंक्रम - इन पंच भागहारनि के नाम का, पर स्वरूप का, अर ते भागहार जिनि-जिनि प्रकृतिनि विर्षे वा गुणस्थाननि विर्षे संभवें ताका वर्णन है । पर सर्वसंक्रमभागहार, गुणसंक्रमभागहार, उत्कर्षण वा अपकर्षणभागहार, अधःप्रवृत्तभागहार, योगनि विर्षे गुणकार, स्थिति विर्षे नानागुणहानि, पल्य के अर्धच्छेद, पल्य का वर्गमूल, स्थिति विषं गुणहानि-पायाम, स्थिति विर्षे अन्योन्याभ्यस्त राशि, पल्य, कर्म की उत्कृष्ट स्थिति, विध्यातसंक्रमभागहार, उद्वेलन भागहार,