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डॉ० सागरमल जैन व्यक्तित्व एवं कृतित्व
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डॉ० सागरमल जी जैन जितना सहृदय हैं। उतना ही विन्रम । यदि उनके द्वारा किसी का भला हो सकता है तो बिना किसी आग्रह के वे उसका उपकार कर देते हैं, भले ही वह व्यक्ति अपनी सहायता के लिए उनसे निवेदन किया है अथवा नहीं व उपकार करने वाले के प्रति भी उपकार की दृष्टि रखते हैं। ऐसे तो काम और क्रोध पर बड़े-बड़े त्यागी और तपस्वी भी बड़ी मुश्किल से नियंत्रण ला पाते हैं। लेकिन जान-पहचान और निकटता की लम्बी अवधि में मैंने डॉ० साहब को कभी नाराज होते नहीं देखा है । अतः डॉ० सागरमल जी जैन की विद्वत्ता सामाजिकता, सहृदयता, विनम्रता आदि सद्गुणों को देखते हुए उनका अपरनाम 'विनय-सागर' रख दिया जाय तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
परन्तु एक बात जो अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है वह यह कि आज हमारे सामने जिस रूप में भी डॉ० सागरमल जी जैन प्रतिष्ठित हैं वह सिर्फ उनकी सुदृढ़ मानसिकता एवं कड़ी मेहनत का ही फल नहीं है बल्कि उन्हें बनाने उनकी धर्मपत्नी श्रीमती कमला जी जैन के सुखद एवं स्नेहिल साथ की भी अहम् भूमिका है । अतएव इस दम्पति के चिर आयुष्य के लिए मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ ।
* शांति निलयन, एन. ४/४ बी-४ आर. कृष्णापुरी करौंदी, वाराणसी ५
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Dr. Sagarmal Jain, a master of Jaina philosoply
- Navin Shah*
I am pleased to know that the Managing Committee of Parshvanath Vidhyapeeth on the occasion of its Diamond Jubilee has proposed to publish a book to falicitate Dr. Sagarmal Jain's remarkable work on Jaina Philosophy.
Through Shri Malavaniaji I came to know about Dr. Sagarmal Jain as the incharge of Parshvanath Vidyapeeth. It is through his total support I was able to organise the conference on Anekantavāda. He has handled and managed the conference with command, wisdom and maturity.
When we came to know that the Chairperson for one session had not come at the last moment, all the people got disturbed and emotionally upset. But, he remained calm and cold and suggested the name of other person among the eminent scholars present.
Dr. Sagarmalji has got depth and insight into Jaina Philosophy. Like Malavaniaji, he is open for modern interpretation of a traditional Jaina Philosophy. His this quality attracted me more towards him as I am trying to interpret Jaina Philosophy for the modern therapy for growth and development as well as for inner tranquillity.
I had trusted him fully in matter of conference and editing the book on Anekantavada and was feeling comfortable in doing so. I am expecting his full support for the future conference and seminar on Jaina Philosophy.
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* Director, Navadarshan Society of Self Development, Ahmedabad.
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