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सैतीस वर्ष
विश्व के कर्मक्षेत्र मे मनुष्य अपने प्रयासो के द्वारा जो सफलता या विफलता प्राप्त करता है उसी के अनुसार लोग उसके जीवन में सार्थकता देखते हैं। ससार में कीर्ति अथवा अपकीर्ति, यश अथवा अपयश मनुष्य-मात्र के उन्ही प्रयासो का पुरस्कार है, जो ससार की ओर से उसे प्राप्त होता है। परन्तु अपने जीवन-सग्राम में उसे जो कष्ट झेलना पडता है, जो वेदना सहनी पडती है, जो दुर्वह भार उठाना पडता है उसकी तीव्रता का अनुभव केवल वही करता है । सरोवर के वक्ष स्थल पर खिले हुए कमलो के सौन्दर्य और सौरभ पर हम सभी मुग्ध होते है, पर उन कमलो के विकास के भीतर जो पक छिपा हुआ है, उस पर किसी की भी दृष्टि नही जाती है । शकरजी के विषपान की तरह सरोवर भी सारे पक को उदरम्य कर देता है। अपने व्यवसाय की उन्नति और साहि~-सेवा के मार्ग में प्रेमी जी ने भी कष्ट महा है, विघ्नो और आपत्तियो को झेला है और यातनाओ का अनुभव किया है। उन्हें अपने यश-मौरभ के लिए जो प्रयास करना पड़ा है, उसमे उनके धैर्य, सहिष्णुता, परिश्रम-शीलता और निपुणता आदि गुणो की कठोर परीक्षा हुई है। पर वेदना के जिस तीव्र प्राघात को वे हृदय पर सह कर चुपचाप शान्त और गम्भीर होकर अपने कार्यों में निरत है, उसे केवल वही अनुभव कर सकते है । खैरागढ ]