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Prakrit Verses in Sanskrit Works on Poetics
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Note : This gathā is again cited on p. 1031. It is included in Gaharayanakosa (No. 479)
too.
559) Bālāo gomti koühalena (?)......
(p. 783) बालाओ होंति कोऊहलेग एमेअ चवल-चित्ताओ। दर-ल्हसिअ-थणीअसु पुणो णिवसइ मअरद्ध/रहस्सो॥ (बाला भवन्ति कौतूहलेन एवमेव चपल-चित्ताः । दर-( = ईषत्-) स्रस्त-स्तनीषु पुननिवसति मकरध्वज-रहस्यम् ॥)
Cf. Karpūrama ñjari II. 49., and Kavidarpaşa App. I, p. 93 v. 56
560) Kim kim de padih isai ......
(p. 783) कि कि दे पडिहासइ सहीहि इअ पुच्छिआएँ मुद्धाए । पढमुल्लअ-दोहलिणिऍ णवरं दइअंगआ दिट्ठी ।। (किं कि ते प्रतिभासते सखीभिरिति पृष्टाया मुग्धायाः । प्रथम-दोहदवत्याः केवलं दयितं गता दृष्टिः ॥)
-Cf. GS I. 15
561)
Niai ajja nikkiva......
(p. 783)
This gatha (GS IV. 28 ) is already cited earlier on p. 641. Vide S. No. (419) supra.
562) Hojjavane so diaraha (?)......
(p. 784) .. होज्ज वणे सो दिअहो जत्थ वि आमलिअ-कुसुम-धम्मिल्ला ।
पत्ते रआवसाणे पुच्छिज्ज पवास-दुक्खाई॥ (भवेत् संभाव्यते एतत् स दिवसो यत्रापि आमृदित-कुसुम-धम्मिल्ला । प्राप्ते रतावसाने पृच्छेयं प्रवास-दुःखानि ॥)
563) Loo jurai jurau......
(p. 784)
This gātha ( GR VI. 29 ) is already cited earlier on p. 745. Vide S. No. (525) supra.
(p. 784)
564) Gahnai kam thammi balā ......
गेण्हइ कंठम्मि बला चुंवइ णअणाइ हरइ मे सिअअं। पढम-सुरअम्मि रअणी वरस्स एमेअ वोलेइ ॥ (गृह्णाति कण्ठे बलाच्चुम्बति नयने हरति मे सिचयम् । प्रथम-सुरते रजनी वरस्य एवमेव गच्छति ॥)