Book Title: Prakrit Verses in Sanskrit Works on Poetics Part 01
Author(s): V M Kulkarni
Publisher: B L Institute of Indology

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Page 661
________________ Correciions 292 298 1366 1397 दळूण न ददात्यङ्गे णिद्धम 302 छत्ते 318 320 329 330 356 1417 1523 1235 1596 1598 365 373 1535) अपसाहि प्रियस्य परिठ्ठविआ पीन...माया वढ-कंचि-बंधणं दृढ-काञ्ची-बन्धनं p. 364...(120) -GS II. 83 -डाहे - हल्लावराई सा 375 377 379 380 385 पुत्ति 287 388 399 406 406 410 439 एक-युवको वृति रजनी स्वप्नेऽपि नागमिष्यत् सुमहिलानां दठूण किरणाहताः दयितेन तडित्-समूह एतत् विनिसताः श्रृणुष्व वलय-शब्दः गृहिणी निःशब्दम् सखीभी. ..441 446 450 452 453 454

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