Book Title: Prakrit Verses in Sanskrit Works on Poetics Part 01
Author(s): V M Kulkarni
Publisher: B L Institute of Indology

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Page 723
________________ GS (W). 836 Setu XI. 76 GS (W) 909 GS III. 44 Setu X. 59 GS VI. 10 Lilavai. 569 GS II. 33 विच्छिडिज्जइ धोरं 1557.324 विज्झावेइ पईवं 1281.277 विद्दमवलअद्धणिहार (?) 1479.311 विरहम्मि तुज्झ धरिअं 1390.296 वीसंतस्स विलासिणि हिअअं 1566.325 वीसंभणिविसंके (?) 1096.244 वेआरिज्जसि मुद्धे 1128.250 वेदणिखातं कि 897.212 वे धा०लणि०अ०पु०व (?) 959.222 वेविरसि०णकरंगुलि 816.197 वेस इ (?वेवइ) ससिइ किल (?लि)म्मइ 1545.322 वेसेण ण ०धि दुःख 1016.231 वेसोसि जीअपंसुलअ 1019.232 वैरिज्जंतो पुर्वकएहि (? पेरिज्जंतो 872.206 पुव्वकएहि) सअणे चितामइअं 916.214 सअयचितामिलिअं (? = सअणे 1296.280 चितामइअं) सअला णिसाअर उरि (?री) 1404.299 सकेअऊसुअमणो 827.199 संकेअकुडंगुड्डीण 828.199 संगमसुहासम० महिम 966.223 संजीवणोसहिं विध 1323.285 संभरिअं पि ण गण्हइ 1648.337 संवड्ढिअसंतोसे 1074.241 सकअग्गहवलिउत्ता (?) 1602.330 सकट्ट० गहरहसु०तं (?) 1085.242 ( = सकअग्गहरहसुत्ता) सच्चं चिअ कटुमओ 1514.317 सच्चं जाणइ दटुं 909.213 1536.320 स०चं स०णा ध०णा (सच्चं सण्णा घण्णा) 813.197 स च्चिअ रामेइ तुम० 1020.232 . स०चंद (? सच्छंद)रमणदंसण : 1433.304. Setu XI. 120 Vajja No 496*5 GS IV. 36 GS VI. 50 Cf. SKp.668 GS I. 12, SK p. 646 GS (W). 759 GS (W). 8.90

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